कोरोनावायरस: प्राकृतिक रूप से प्राप्त प्रतिरक्षा कितने समय तक प्रभावी रहती है?
कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप के बाद से, कई लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि COVID-19 से ठीक होने के बाद प्राकृतिक रूप से प्राप्त इम्युनिटी कितने समय तक सुरक्षा प्रदान करती है। येल विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नवीनतम अध्ययन ने इस प्रश्न की जांच की है, और चेतावनी दी है कि संक्रमण से गुजरने वाले, लेकिन टीकाकरण नहीं कराने वाले व्यक्तियों को जल्दी से फिर से संक्रमित होने का खतरा होता है। शोध ने यह स्पष्ट किया है कि प्राकृतिक रूप से प्राप्त सुरक्षा स्थायी नहीं होती है, और टीकाकरण लेना आगे के संक्रमणों को रोकने के लिए अनिवार्य है।
शोध के दौरान, वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि COVID-19 से ठीक होने के बाद केवल तीन महीने के भीतर, या उससे भी कम समय में, पूर्व संक्रमण के खिलाफ इम्युनिटी में महत्वपूर्ण कमी आ सकती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग पहले ही वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, वे टीकाकरण के विकल्प को नजरअंदाज न करें। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि पूर्व संक्रमण अकेले दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
प्राकृतिक इम्युनिटी की अवधि
प्राकृतिक रूप से प्राप्त इम्युनिटी की अवधि से संबंधित प्रश्न महामारी की शुरुआत से ही शोधकर्ताओं को परेशान कर रहे हैं। येल विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन ने COVID-19 से ठीक होने के बाद विकसित होने वाली सुरक्षा की अल्पकालिकता को उजागर किया। शोध के परिणामों के अनुसार, प्राकृतिक रूप से प्राप्त सुरक्षा केवल कुछ महीनों तक ही रहती है, और संक्रमण के बाद वायरस से फिर से संक्रमित होने का जोखिम लगातार बढ़ता है।
शोधकर्ताओं ने SARS-CoV-2 के निकट संबंधियों के इम्यूनोलॉजिकल डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें सर्दी के कारण होने वाले वायरस भी शामिल हैं, ताकि संक्रमणों के पुनः प्रकट होने की संभावना को समझा जा सके। विश्लेषण के दौरान यह पता चला कि इम्युनिटी में कमी के साथ-साथ कोरोनावायरस के नए वेरिएंट भी प्रकट होते हैं, जो संक्रमण के जोखिम को और बढ़ाते हैं। इस प्रकार, शोधकर्ता टीकाकरण के महत्व पर जोर देते हैं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो पहले ही COVID-19 से गुजर चुके हैं।
शोधकर्ता यह भी ध्यान दिलाते हैं कि इम्युनिटी एक सरल स्थिति नहीं है, बल्कि समय के साथ लगातार बदलती रहती है। जो लोग महामारी के प्रारंभिक चरण में संक्रमित हुए थे, वे बढ़ते जोखिम में हैं, क्योंकि नए वेरिएंट के प्रकट होने से पूर्व इम्यून प्रतिक्रियाओं की प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसलिए, शोधकर्ता सुझाव देते हैं कि लोग केवल संक्रमण से गुजरने पर निर्भर न रहें, बल्कि टीकाकरण भी कराएं।
फिर से संक्रमण और वायरस के उत्परिवर्तन
कोरोनावायरस के फिर से संक्रमण का जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है, जैसे-जैसे वायरस म्यूटेट होता है और नए वेरिएंट प्रकट होते हैं। येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, SARS-CoV-2, जो COVID-19 का कारण बनता है, न केवल सबसे प्रारंभिक वेरिएंट के संक्रमण के बाद समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, बल्कि बाद में आने वाले स्ट्रेन भी नए चुनौतियाँ पेश कर सकते हैं। इम्यून प्रतिक्रियाओं में कमी के साथ, वायरस पहले से विकसित सुरक्षा को दरकिनार करने में सक्षम होता है, जिससे फिर से संक्रमण हो सकता है।
शोध के दौरान, वैज्ञानिकों ने देखा कि SARS-CoV-2 से संबंधित पुनः संक्रमण बीमारी से ठीक होने के बाद भी हो सकते हैं। इम्युनिटी में कमी और वायरस के विभिन्न वेरिएंट के प्रकट होने के साथ, संक्रमित होने की संभावना लगातार बढ़ रही है। पुनः संक्रमण के मामले साधारण सर्दी के समान हैं, जहां लोग हर साल वायरस के एक अन्य प्रकार से फिर से संक्रमित होते हैं।
शोधकर्ताओं ने SARS-CoV-2 और अन्य कोरोनावायरस के पुनः संक्रमण के जोखिमों की तुलना करते हुए निष्कर्ष निकाला कि COVID-19 वायरस अधिकांश ज्ञात साधारण सर्दी के कारण बनने वाले वायरस की तुलना में कहीं अधिक घातक है। इसलिए, टीकाकरण लेना गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करने और शरीर की सुरक्षा को विभिन्न वेरिएंट के खिलाफ मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।
शोध के परिणाम बताते हैं कि साधारण सर्दी के समान, कोरोनावायरस भी लोगों को फिर से संक्रमित करने में सक्षम है, लेकिन COVID-19 के मामले में परिणाम कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह बताया कि वैक्सीनेशन का आगमन समुदायों को वायरस के विभिन्न रूपों के खिलाफ अधिक सुरक्षित बनाने का अवसर प्रदान करता है, और भविष्य में संक्रमण की संख्या को कम करता है।